Ehsaas - e - Noor
Saturday, March 12, 2011
सरज़मीं
चमक की चाह में,ये सरज़मीं नहीं छोड़ी.
यहाँ की धूप , यहाँ की नमी नहीं छोड़ी.
वो पेड़ आज जो ऊंचाइयों को छूता है ..
ज़रा सा बीज था, जिसने ज़मीं नहीं छोड़ी.
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