Saturday, March 12, 2011

ग़ज़ल


वो ज़हर का प्याला बनता है, या आँख का तारा बनता है.
परवरिश तेरी बतलादेगी, क्या तेरा दुलारा बनता है.

धरती अपनी,मेहनत अपनी,गेहत अपनी,लागत अपनी,
फोकट में फसल तुम्हारी क्यों?यह हक तो हमारा बनता है.

ये  राजकुंवर तो पढलिख कर, एक रोज़ पराये  होते  हैं ,
सबसे नाकारा बेटा ही हर माँ का सहारा बनता है.

मस्जिद चमके दीवाली पर,मंदिर में हो सहर-ओ- इफ्तार,
मुश्किल है मगर,सोचो तो सही,क्या खूब नज़ारा बनता है.

तारीख उठा कर देखो "नूर",हर दौर की यह सच्चाई है-
छोटे से शहर का शहजादा,एक रोज़ शहनशा बनता है.

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